#नही_हुजूर_किसान_नही_कर_रहा
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"ऑर्डर ऑर्डर ऑर्डर..."
बाहर आग उगलती गर्मी, अंदर जज साहब के चेम्बर से अत्यधिक शीतलता के बीच ये शब्द उछले
फिर आवाज़ आई
"देश मे बढ़ते प्रदूषण के पीछे ये काश्तकार है, जाहिल-गंवार 'पराली' जलाता है, फसल अवशेष जलाता है। अब कहीं कोई ऐसा करता दिखे तो जेल डाल देना..."
अदालत में सन्नाटा था, काले कोट में सजे धजे लोगो के चेहरों पर कुटिल मुस्कान थी।
अदालत के मसूरी से वातावरण से बाहर खुले में आए लोगों के जिस्म पर जैसे ही गर्म हवा के थपेड़े टकराए वे बोले
"साला कितनी गर्मी हो गई, अब तो सांस लेना भी मुश्किल हो गया है।"
तभी उस बिल्डिंग में चल रहे विंडो एसी के आगे से गुजरे और तपती हवा उनसे टकराई तो काश्तकारों के प्रति नफरत भरी एक गाली और निकली।
वे तेज़ चलते कदम अदालत परिसर से बाहर सड़क पर आए तो उनकी चमचमाती लक्जरी गाड़ी रुकी। गाड़ी का दरवाजा खोला, किस कदर ठंड थी अंदर, कमाल का वातानुकूलित सिस्टम था कार का, काश्तकारों को बढ़ते प्रदूषण का जिम्मेदार बताते वे आपसी चर्चा करने में मशगूल हो गए उधर उनकी कार गर्म हवा फेंकती हुई सरपट दौड़ गई।
खैर
अगले रोज से किसान सहमा हुआ था, चोरी छिपे पराली जला रहा था, कहीं पकड़ा जाता, सिस्टम के आगे गिड़गिड़ाता, पांव पकड़ता, गाली खाता, अपराधी बना कर्ज़ ले जुर्माना भरता तो कहीं जेल की कोठरी तक मे भी ठूंसा जा रहा था और पड़े पड़े यही सोचता की पूर्वज यही तरीका तो खेती का बता गए थे, वह तो पुश्तैनी खेती कर रहा था उससे क्या अपराध हो गया। जलते फसल अवशेष जमीन की जान होते थे, शत्रु किट मर जाते थे, मित्र कीट तो मिट्टी बोथरी कर जमीन में समा जाते थे। अन्नदाता अब कानून बनने के बाद अपराधी हो गया था, जुर्माना और जेल नसीब बन सकते थे।
'मगर वो कहते है ना जिसका कोई नही होता, उसका ही तो खुदा होता है..."
अचानक एक महामारी आई, विश्व डर गया, महाशक्ति सहम गई, सरकारें हिल गई, सिस्टम डगमगा गए #नॉवेल_कोरोना_कोविड19 से दुनिया भर में
लगभग सब कुछ थम गया।
भारत भी अछूता नही रहा, यहां 'लोकडाउन' लगा, आम और खास जो जहां था वही रुक गया। वक्त का पहिया थम गया। उद्योग, फैक्ट्री, मिल, हवाईजहाज, रेल, बस, कार सब के पहिये थम गए, सबके शोर गुम हो गए।
दहशत, अफरातफरी के बीच मानो बरसो से छटपटा रहे एक विषैले सच को सामने आने के लिए इसी वक्त का इंतज़ार था।
कंक्रीट के पथरीली जंगलों की बुनियाद में जिन जिस्मो ने कड़ी मेहनत मजदूरी कर खुद को झोंका था, जो अपनी माटी, खेत, खलियान गांव की सोंधी मिट्टी की महक को बेकार समझ शहर की और अंधाधुंध दौड़ते आए थे। जो गांव की मिट्टी की खुश्बू, अपनेपन को ठुकरा कर शहर को भविष्य मान कर आए थे। उन्हें तो लोकडाउन लगते ही वो शहर 4 दिन की भूख मिटाने लायक राशन तक देने में असमर्थ था। उन्हें तो रह रहकर यह ख्याल सताने लगा कि अगर यहां उनकी मौत हो गई तो उनकी मिट्टी को कांधा देने के लिए 4 कांधे भी उपलब्ध नहीं होंगे। ये तो कभी सोचा ही ना था। 4 दिन में ही आंखों पर बंधी बनावटी तरक्की की झूठी पट्टी खुल चुकी थी।
और अचानक लाखों कदम सिर पर बैग, कमर पर छोटे बच्चों को ले अपने गांव की और पैदल ही दौड़ से पड़े थे।
उधर लोकडाउन के बाद सड़को पर चिकित्सक, पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी या प्रशासनिक अमला ही नजर आने लगा जो बीमार और बेजार के लिए व्यवस्था बनाए रखने की कवायद में जुटा पड़ा था।
मगर इस कालखंड में भी जब सब थम गया था, तब गांव गुलजार थे, खेत लहलहा रहे थे, काश्तकार खेत मे लगा पड़ा था, और सिस्टम से ले, काले कोट और घर लौटते मजदूर तक कि निगाहें उस काश्तकार की और उठी हुई थी जो आज तक घाटे का सौदा "खेती" करता आया था।
जिसकी फसल का दाम दूसरे तय करते थे, जिसे खेती कैसे करे ये भी दूसरे बताने लगे थे। जो दिन भर धरती का सीना चीर हल चलाते वक्त, लान काटते वक्त, मिट्टी-धूल नाक, आंख, गले मे उतारता रहता था, जो जहरीले कीटनाशकों के छिड़काव के बीच भी खुद को जहर से मरने के लिए तैयार कर चुका था। जिसे अब न्याय के मंदिर तक मे प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा था वह 'बेचारा' जो हर आपदा से निपटने के लिए सिस्टम पर निर्भर था।
उस काश्तकार ने ऐसी विषम परिस्थितियों में खुद को सामने लाकर खड़ा कर दिया।
स्वागत को हाथ फैला दिए अपने 'भगोड़े' भाइयों के लिए। कहा आ भाई आ छक कर खा।
घबराई सरकार की उम्मीद बन गया यही काश्तकार। सरकार इसी काश्तकार के बलबूते ये देख इतरा उठी की कुछ भी ना हो तो भी 2 साल तक के लिए तो दाल, चीनी, चावल, गेंहू की कमी हो ही नही सकती।
उधर काश्तकार ने एलान कर दिया
"कोरोना से तुम मत किसी को मरने देना, भूख से किसी को काश्तकार मरने ना देगा"
सरकार को संजीवनी दे चुका था काश्तकार,
यही नहीं जब सरकार ने गुहार लगाई के 1 कुंतल गेहूं में से कुछ अनाज सरकार को दे दे तो उसने एक बार भी मना नहीं किया।
तो उधर जबकि खेत मे 15 साल पुराने ट्रैक्टर चल रहे थे, किसान फसल अवशेष भी जला रहे थे, वातावरण में भूसे के कण थे, कीटनाशक भी छिड़के जा रहे थे। घरों में चूल्हे भी जल हवा में धुंए फेंक रहे थे, हुक्के भी गुड़गुड़ाए जा रहे थे।
मतलब काले कोट की दलील और प्रदूषण विभाग के आंकड़ों में दोषी अन्नदाता तमाम कथित प्रदूषण फैलाने में लगा था।
तब काली नदी नीली दिख रही थी, यमुना में सिक्का डालो तो तलहटी में नजर आ रहा था। खरबो रुपये जिस गंगा को स्वछता प्रदान ना कर पाए वो पवित्र, निर्मल, स्वच्छ साफ जल में बदल बहती जा रही थी।
प्रदूषण इंडेक्स बता रहा था इतनी साफ तो दुनिया हज़ारो साल पहले रही होगी। पेड़ो, जंगलों में निखार आ गया था, पेड़ों पर पंछियों की चहचहाट की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी मोर घरों में आने लगे थे सड़कों पर सांभर हिरण दिखने लगे थे हाथी तक हरिद्वार की हर की पौड़ी पर स्नान करके लौट गया था, उधर सांस के फेफड़ों के मरीज ठीक होने लगे, खांसी-धसका बीते समय की बात लगने लगी। श्मशान, कब्रिस्तान में जाने वालों की तादाद में बड़ी कमी आ गई।
तब मन मस्तिष्क में सवाल तैर गया
फिर वो अन्नदाता, वो किसान, वो काश्तकार वो घाटे के सौदे में लगा खांटी ठेठ समुदाय
अदालत में आई दलीलों में जलील क्यों किया जाता रहा है, क्यों उसे अपराधी घोषित किया जाता है, क्यों उस कृषक से जिसके तमाम दुश्मन (प्रकृति, बाढ़, सूखा, आंधी, ओलावर्ष्टि, जीव जंतु, जंगली, आवारा पशु, बिजली, बिचौलिए, तंत्र आदि) है, के साथ न्याय के मंदिर तक में अन्याय किया जाता है।
कोई विभाग, कोई आँकड़ेबाज़, कोई विश्लेषक शायद ये तस्वीर सामने लाए की
24 मार्च 2020 को प्रदूषण इंडेक्स क्या कहता था
और
20 अप्रैल 2020 को उसकी तस्वीर क्या थी।
हवा, पानी के प्रदूषण के सही आंकड़े दे ये विभाग अदालत में स्पष्ट करें कि
"माय लोड, हुजूर, हमसे खता हुई, हमसे गलती हुई, हम माफी चाहते है कि हमने अन्नदाता पर बेफिजूल आरोप लगाए"
"हुजूर प्रदूषण जल में हो हवा में हो, इसमे बढ़ोतरी हमारे हवाईजहाज, कार, बस, बाइक, कारखाने, फैक्ट्री, मिल, कंक्रीट की बिल्डिंगे, मिट्टी का घनत्व कम कर बनती जा रही सड़के, फ्लाईओवर और हुजूर वातानुकूलित सिस्टम ये एयरकंडीशनर कर रहे है, किसान नही कर रहा हुजूर किसान नही कर रहा"
【20 अप्रैल 2020 से 11 उद्योगों को चलने की अनुमति दे दी गई है, 20 अप्रैल को प्रदूषण विभाग यह आंकड़े दे के 10 दिन में ही इन उद्योगों के चलने के उपरांत हवा और जल के प्रदूषण में कितनी बढ़ोतरी हुई है।
प्रदूषण विभाग को 24 मार्च 2020, 20 अप्रैल 2020 और 30 अप्रैल 2020 के आंकड़े देने चाहिए और स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए के फैक्ट्रियां चलने के बाद प्रदूषण में कितनी प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है】
[#विकास_बालियान
राजनैतिक विश्लेषक और किसान, कृषि मामलों के जानकार]